यह ज्योतिष शास्त्री
की भूमिका होती है कि वह पीड़ित ग्रहों और उनके कर्मो को सही दिशा दिखाने के लिए
पहचाने।
प्रत्येक पीड़ित और
संतप्त ग्रह कुछ सबक सिखाने या मस्तिष्क और व्यक्तित्व के कुछ पहलुओं पर मजबूत
करने की जरूरत पर प्रकाश डालते हैं
उन्हें समझना ही
ज्योतिष शास्त्र को उपचार मार्ग की भांति उपयोग करने की कुंजी है।
उपासक को योग तंत्र
में प्रार्थना करने के चरण, मंत्रो का उच्चारण और मंत्र यंत्र की सिद्धि पाने और
अन्य इस प्रकार के पुस्तक में दिए गए पारम्परिक तरीकों का अनुसरण करने का सुझाव
दिया जाता है। इस प्रकिया का अष्टांग योग में वर्णन किया गया है। मंत्रों की
कार्यक्षमता इच्छाशक्ति को नियंत्रित करने की ताकत और यम द्वारा प्राप्त की गई
पांच इंद्रियो पर निर्भर करती है। मंत्रों की क्षमता बढ़ाने वाला अन्य स्तंभ नियम
(नियमितता) है जो कि केवल योग द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। वे बहुत कुछ
अष्टांग योग के ही भाग है।
योग एक हिन्दु
अनुशासित नियम पद्धिति है जिसका उदेश्य मानव चेतना को उचित आत्मिक परिज्ञान और
शांति हेतु प्रशिक्षण प्रदान करना। यह व्यायाम की वो प्रणाली है जिसका अभ्यास शरीर और मस्तिष्क पर
नियंत्रण में वृद्धि के लिए होता है। ये कहा जाता है कि योग की जानकारी मंत्रो की
क्षमता में वृद्धि के लिए आवश्यक होती है। यदि उपासक अपने आपको स्वस्थ बनाए रखता
है और अपना भोजन ठीक प्रकार से लेता है तो वह कभी बीमार नही पड़ेगा और अपने पूरासचर्ण
को पूरा कर सकेगा।
यौगिक अभ्यास वह होते
हैं जो समस्या के मूल स्रोत की ओर जाते हैं, योग करना उन लोगों के लिए एक मुश्किल
काम हो सकता है जो ज्योतिष शास्त्री से जल्दी और आसान हल, एक जादूई नुस्खा पाने की
आशा रखते हैं। जबकि, योगिक उपचारों के लिए जीवनशैली में बदलाव लाने की आवश्यकता
होती है। एक कठोर अनुशासन जो लम्बे समय तक जीवन में बना रहे।
यह उस व्यक्ति के
मामले के समान है जो खांसी के रोग से पीडित है और उपचार के लिए डॉक्टर के पास जाता
है। और एक अच्छा डाक्टर उसे ध्रुम्रपान न करने और रोजाना सांस वाली कसरत करने की
सलाह देता है, लेकिन रोगी अपनी आदतें छोडने को तैयार नही होता और किसी अन्य डॉक्टर
के पास जाता है। वह डॉक्टर उसे बस खांसी दूर करने की गोली देता है।
यहां खांसी के लिए दी गई
गोलियों में कोई बुराई नही है लेकिन उस स्थिति में समस्या के मूल स्रोत पर ध्यान
नही दिया जाता। उसी प्रकार, मनुष्य की सभी समस्याएं उन कारणों से होती हैं जिनसे
वह अपनी प्राणशक्ति और अंर्तरात्मा से परिचित नही होता। जो अध्यात्मिक अज्ञानता
कहलाती है। जो कि सभी गलत कर्मो और क्रियाओं का कारक होती है जिससे उसे इस जीवन
में और अगले जीवन में भी दर्द सहन करना पड़ता है। जब हम अपने कुंडली में संतप्त
ग्रह को देखते हैं तब बहुत कुछ हमारे पिछले जीवन के गलत कामों पर प्रकाश डालता है
जिसे हमें इस जन्म में स्वीकार करके बदलना होता है।
Dr. Shanker Adawal
Profile: www.connectingmind.com
Research work and articles on Bhrigu Nadi astrology: www.shankerstudy.com
https://www.facebook.com/groups/Astrology.Fan.Club/
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